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Showing posts from October, 2021

वासुदेव बलवंत फड़के( A forgotten Hero )

अगर बात करे भारतीय स्वतंत्रता की क्रांति और उन क्रांतिकारियों की जिनकी वजह से देश को आजादी मिली तो इतिहास की रेत में शायद हज़ारों नाम दबे मिले। पर हम सिर्फ कुछ नामों से ही रु-ब-रु हुए हैं। वैसे तो भारत माँ के इन सभी सपूतों के बारे में जानकारी सहेजने की कोशिश जारी है ताकि आने वाली हर पीढ़ी इनके बलिदान को जान-समझ सके। https://amzn.to/3mNS2eD ऐसा ही एक महान क्रांतिकारी और भारत माँ का सच्चा बेटा था वासुदेव बलवंत फड़के! फड़के ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध सशस्त्र विद्रोह का संगठन करने वाले भारत के प्रथम क्रान्तिकारी थे। उनका जन्म 4 नवंबर, 1845 को महाराष्ट्र के रायगड जिले के शिरढोणे गांव में हुआ था।   साल 1857 की क्रांति की विफलता के बाद एक बार फिर भारतीयों में संघर्ष की चिंगारी फड़के ने ही जलाई थी। वासुदेव बलवन्त फड़के बचपन से ही बड़े तेजस्वी और बहादुर बालक थे। उन्हें वनों और पर्वतों में घूमने का बड़ा शौक़ था। कल्याण और पुणे में उनकी शिक्षा पूरी हुई। फड़के के पिता चाहते थे कि वह एक व्यापारी की दुकान पर दस रुपए मासिक वेतन की नौकरी कर लें। लेकिन फड़के ने यह बात

Bhagat Singh

भगत सिंह की बैरक की साफ-सफाई करने वाले भंगी का नाम बोघा था। भगत सिंह उसको बेबे (मां) कहकर बुलाते थे। जब कोई पूछता कि भगत सिंह ये भंगी बोघा तेरी बेबे कैसे हुआ? तब भगत सिंह कहता, मेरा मल-मूत्र या तो मेरी बेबे ने उठाया, या इस भले पुरूष बोघे ने। बोघे में मैं अपनी बेबे (मां) देखता हूं। ये मेरी बेबे ही है। यह कहकर भगत सिंह बोघे को अपनी बाहों में भर लेता। भगत सिंह जी अक्सर बोघा से कहते, बेबे मैं तेरे हाथों की रोटी खाना चाहता हूँ। पर बोघा अपनी जाति को याद करके झिझक जाता और कहता, भगत सिंह तू ऊँची जात का सरदार, और मैं एक अदना सा भंगी, भगतां तू रहने दे, ज़िद न कर। सरदार भगत सिंह भी अपनी ज़िद के पक्के थे, फांसी से कुछ दिन पहले जिद करके उन्होंने बोघे को कहा बेबे अब तो हम चंद दिन के मेहमान हैं, अब तो इच्छा पूरी कर दे! बोघे की आँखों में आंसू बह चले। रोते-रोते उसने खुद अपने हाथों से उस वीर शहीद ए आजम के लिए रोटिया बनाई, और अपने हाथों से ही खिलाई। भगत सिह के मुंह में रोटी का गास डालते ही बोघे की रुलाई फूट पड़ी। ओए भगतां, ओए मेरे शेरा, धन्य है तेरी मां, जिसने तुझे जन्म दिया। भगत